बुलडोजर न्याय अस्वीकार्य, संपत्ति नष्ट करने की धमकी से लोगों को नहीं दबा सकते; सुप्रीम कोर्ट के तेवर सख्त

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बुलडोजर न्याय की अनुमति दी जाती है तो संपत्ति के अधिकार की सांविधानिक मान्यता समाप्त हो जाएगी। अगर किसी विभाग या अधिकारी को मनमानी और गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाती है तो इस बात का खतरा है कि प्रतिशोध में लोगों की संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया जाएगा।सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर के जरिये न्याय की प्रवृत्ति की कड़ी निंदा की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि नागरिकों की संपत्तियों को नष्ट करने की धमकी देकर उनकी आवाज को दबाया नहीं जा सकता और ‘बुलडोजर न्याय’ कानून के शासन के तहत अस्वीकार्य है। अदालत ने कहा कि बुलडोजर न्याय न केवल कानून के शासन के विरुद्ध है, बल्कि यह मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है। सरकार को किसी भी व्यक्ति की संपत्ति ध्वस्त करने से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए और उन्हें सुनवाई का अवसर देना चाहिए। अगर बुलडोजर न्याय की अनुमति दी जाती है तो संपत्ति के अधिकार की सांविधानिक मान्यता समाप्त हो जाएगी। अगर किसी विभाग या अधिकारी को मनमानी और गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाती है तो इस बात का खतरा है कि प्रतिशोध में लोगों की संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया जाएगा।सीजेआई चंद्रचूड़ के रविवार को रिटायर होने से पहले शनिवार को इस मामले का विस्तृत फैसला शीर्ष अदालत की वैबसाइट पर अपलोड किया गया। सीजेआई चंद्रचूड़ के लिखे फैसले में कहा गया है कि बुलडोजर न्याय के माध्यम से सरकार के किसी भी अंग या अधिकारी द्वारा मनमानी और गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाती है, तो नागरिकों की संपत्तियों को बाहरी कारणों से चुनिंदा प्रतिशोध के रूप में ध्वस्त कर दिया जाएगा। नागरिकों की आवाज को बुलडोजर न्याय की धमकी देकर नहीं दबाया जा सकता।अदालत ने 6 नवंबर के फैसले की प्रति जारी की, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबरेवाल आकाश को सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लिए उनके घर को ध्वस्त करने के लिए अंतरिम मुआवजे के रूप में 25 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

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